November 18, 2025

Kshitij

 चलते चलते सर उठाया तो पत्तों के बीच से छान रहा था 

आसमान ख़ुशियों भरा 

हरित फलित वृक्ष खड़ा था अपनी जड़ें धरती में ख़ूबाये 

अपने हाथ आकाश की ओर उठाए

रुक कर जब मैंने जब पत्तों की ओट से 

छन-छन कर आते नभ को देखा 

वो नीचे आता प्रतीत हुआ - जैसे की लालायित धरती को गले लगाने

उस में पूरी तरह समा जाने 

धरती स्थिर- घूमती हुई पर फिर भी एक लाइलाज तड़प कि हक़दार

दूर क्षितिज में दीख पड़ा उनका मिलन

November 15, 2025

दृष्टिकोण


 कई सौ साल पुरानी बात है 

गहन रात्रि के घोर सन्नाटे में 

सो रहा था बालक एक 

मुख में अंगूठा डाले 

दूसरे हाथ से माँ का अंचल थामे 

सुख निद्रा मग्न थी कलांत माता 


एक ओर पुत्र एक ओर प्रिय उसका नाथ 

करवटें बदलता हुआ 

यह क्या - 

पुरुष उठा और तीर कि तरह निकल पड़ा 

प्रण किया था की मुड़कर न देखेगा 

अन्यथा हो जाएगा दिग्भ्रान्त


रथ के चक्र चल पड़े 

साथ ही साथ उसके मन का चक्र 

उनका क्या जिन्हें  मैं छोड़ आया 

प्रातः क्या सोचेगी प्रिय यशोधरा 

मेरे वक्ष पर कूद-कूद जगा ना पाएगा 

राहुल - तो तो कर होगा बेहाल 

कैसे शांत कराएगी उसे यशोधरा 

स्वयं उसके हृदय क्रन्दन का क्या …


रथ रुका - उतरे सिद्धार्थं

भिक्षु वेश धारण कर, हुए अरण्य में विलीन 

रथ चालक se यह कह 

की सबको समझा देना यथाशक्ति 


****


सूर्यदेव मुस्कुराते हुए आकाश में चढ़ने लगे 


महल में मचा था हाहाकार

राहुल को गले लगाये यशोधरा कर रही थी प्रलाप्


भविष्यवाणी का पता था मुझे तब 

क्यूँकर मैंने तुमको स्वामी स्वीकारा हे नाथ

जाना था तो हमें क्यों न संग ले गये 

क्यों न भागीदार बनाया अपने दुख का 

जिससे डर कर तुम भागे

जिन प्रश्नों की छाया देखती थी तुम्हारे श्रीमुख पर 

क्यों न हमें भी उनके उत्तर ka अभिलाष बनाया 


तुम्हें ज्ञात था कि तुम्हारे अंग्वस्त्र से गाँठ बांधकर सोती थी 

ग्लानि नहीं हुई जो फिर भी चले गये ? 

वियोग की पीड़ा मुझे और पुत्र को अश्रु दे गये ?


हम दो अभागे तो सोये हुए थे 

तुम तो जागृत थे 

अबोध अपने आश्रितों को तुम कैसे सोता छोड़ गये 

इन आँखों से पानी का सोता बहता छोड़ गये


कभी तुम मिलोगे या नहीं 

ये भी मुझको पता नहीं

पर तुम अपने अंश को पल पल बढ़ता न देख पाओगे

जीवन जैसा है उसे वैसा ही जीने का सुख न पाओगे

तुमको जिसकी चाह है -वह सब तुम पा भी जाओ

पर हमको कभी न पाओगे.

January 22, 2025

NIYA

 How to put some wind beneath your wings Niya

You do have wings- shiny, shimmery, gauzy delicate ones

That keep showing up and no sooner have u unfurled them

You fold them away- too shy to use them

Undoubtedly you have been snickered at

Comments been made loud or in whispers

How to strengthen you from within

So much so that you can begin to ignore

And grow and become that colouful

Beautiful butterfly that you are.